Wednesday, 12 December 2012

                                    एफ डी आई का हल्ला 

प्रदक्षिणा पारीक 
खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर एक बड़ी बहस अंततः ख़त्म तो हुई पर एक सवाल भी छोड़  गयी की क्या ऍफ़ डी आई पर हुआ इत्ता हल्ला ,विरोध,प्रदर्शन आदि सब वाजिब थे या व्यर्थ। विपक्ष ने पुरजोर विरोध कर इसे रोकने का प्रयत्न किया  पर जैसे भी सही इसकी नैया पार लग ही गई। पर हम थोडा सोचे तो याद आता  है की पहले भी ऐसा कई बार हुआ है। जब देश में रंगीन टेलीविज़न आने वाला था तो उसका विरोध किया  गया की यह बिलकुल व्यर्थ है। फिर कंप्यूटर का विरोध हुआ की यह रोजगार के अवसर खा जायेगा। पर वो  भी नहीं हुआ। उसके बाद बारी आई डब्लू टी ओ की , विरोध हुआ यह कहकर की ये भारतीय कृषि और उद्योगों को मार देगा। पेप्सी , मैकडो नाल्ड्स ,कोक आदि का भी विरोध हुआ। जब देश में उदारीकरण की नीति लागू की  थी  तो भी विपक्ष ने इसका रास्ता यह कहकर रोकना चाहा की ये देश की बर्बादी का रास्ता   है। समय समय पर सर उठाने वाले ये भय उसी भेडिये के से लगते है जो कभी आया ही  नहीं. 
ये सभी कदम देश की दिशा में होने वाले विकास के कदम थे जो सकारात्मक  भी रहे। सिर्फ एक पक्ष सुनकर विचारधारा नहीं बनाई जानी  चाहिए. परिवर्तन प्रकृति का नियम है जो बदला नहीं जा सकता।
एक जगह रुक जाने से विकास की गति भी रुकेगी। साथ में यह भी सोचा जाना चाहिए की सरकार इतनी बड़ी नीति ,इतने बड़े पैमाने पर इतनी द्रढ़ता से यूं   ही नहीं लागू कर देगी,पहले उस पर पर्याप्त अनुसन्धान और कार्य किया जाता  है। उदारीकरण की ही तरह यह नीति भी देश की व्यवस्था को मजबूती ही प्रदान करेगी।

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