Saturday 9 November 2013

नशा का कारगर इलाज हैः मनोविज्ञान
नषा जिंदगी के खूबसूरत एहसास और यादगार पलों को हमसे दूर ले जाता है। साथ ही तनाव, भारीपन, रिष्तों में खटास और आर्थिक समस्याओं के तौर पर जिंदगी का नासूर बन कर पीडा देता रहता हंै। हालांकि दुनिया भर मे ंनषा करने वालों की तादाद बड़ी है, लेकिन कम ही लोग ज़ानते है कि नषा मनोरोग है। एक स्टडी में पता चला है कि देष के 70 फीसदी से ज्यादा लोग किसी न किसी प्रकार का नषा करते है।  इस लत से परेषान ज्यादातर लोग छुटकारा तो पाना चाहते है, लेकिन वे चाह कर भी ऐसा नही ंकर पाते। नषा मनोरोग है, अपनी इसी अनभिज्ञता के चलते इसके कारगर इलाज और उपाय तक वे नही ंपहुंच पाते। वैज्ञानिकों की मानें, तो दूसरी बीमारियों की तरह यह भी एक बीमारी है, जिसका दृढनिष्चय,चिकित्सकीय परामर्ष और कुछ दवाईयों का सेवन कर उपचार किया जा सकता है। चिकित्सकों के मुताबिक षराब और अफीम जैसे कुछ पदार्थो से षारीरिक व मानसिक डिपेंडेंसीे हो जाती है। ड्रग डिपेंडेंसी जिस तरह की होती है, वैसे ही उसके विड्रोल सिस्टम्स में घबराहट, बैचेनी, नींद न आना, कमजोरी महसूस करना, उल्टी, दस्त, हाथ-पंाव मे ंदर्द या फिर षौच न जा पाना जैसी तकलीफ होती है।
किशोरावस्था मे ंहावी होेता है नषा
मनोवैज्ञानिक ए.वी.सिंह मदनावत ने बताया कि  नषे की प्रवृत्ति के षिकार वे लोग होते है, जिनका व्यक्तित्व कमजोर होता है या वे छोटे-मोटे  मनोरोग से पीडि़त होते है। दरअसल डिपे्रषन, एंजाइटी, फोबिया ऐसे मनोरोग हैं। इन रोगो ंसे पीडित व्यक्ति राहत के लिए नषे का सेवन षुरू कर देते हैं, और धीरे-धीरे नषे के आदि हो जाते है। नषे का एक कारण पीयर प्रेषर भी है। ज्यादातर किषोर अपने साथियों के साथ सिगरेट या षराब का सेवन षौकिया तौर पर षुरू करते है,और धीरे-धीरे उन्हे ंइस की लत पड जाती है। इसी प्रकार काॅल सेंटर्स में काम करने वाले लोग नींद न आने के लिए गांेलियां खाते है और आदि हो जाते है। कफ सीरप, एल्प्राजोलम और आयोडेक्स पेटेªाल थिनर बेस्ड पदार्थों को सूंघ कर नषा करते है।
नषे की लत
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डाॅ. आलोक त्यागी बताते हैं कि नषे को आईसीजी-10,डीसीएम-5 में डिसआॅर्डर मेे ष्षामिल किया जा चुका है। नषे की लत को चिकित्सकीय भाषा में ड्रग डिपेंडेंस कहा जाता है। ड्रग डिपेंडेंसी दो प्रकार की होती हैं, षारीरिक और मनोवैज्ञानिक। षराब, अफीम नींद की गोलियां और पेटोªल थिनर ऐसे पदार्थ हैं, जिनका निरन्तर सेवन करने पर ये खून के माध्यम से दिमाग,दिल और षरीर के अन्य भागो पर असर दिखाना षुरू कर देते है। और षरीर के कुछ अंग इन पदार्थो पर आश्रित हो जाते है। इसी प्रकार सिगरेट, गुटखा, खैनी, चाय, काॅफी जैसी कई ऐसी चीजें हैं, जिन पर व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से निर्भर हो जाता है।
ऐसे हो सकता हैं इलाज़
मनोेरोगो ंमे ंविड्रोल सिस्टम्स में डिप्रेषन उदासी व्यवहार मे परिवर्तन चिड़चिड़ापन एंजाइटी जैसी समस्याएं होती है। इसी कारण निरन्तर नषे का सेवन करने वाला व्यक्ति चाह कर भी इससे छुटकारा नहीं पा सकता। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डाॅ. आलोक त्यागी का कहना है कि नषे की लत चाहे किसी भी हद तक हो, यदि व्यक्ति दृढ निष्चय कर ले तो इस परेषानी से छुटकारा पाया जा सकता है। ऐसे लोगो ंको तुरन्त मनोचिकित्सको से परामर्ष लेना चाहिए। मनोचिकित्सक सबसे पहले पीडित व्यक्ति की काउंसलिंग कर आत्मबल मजबूत करते है। यदि नषे को छोडने में छोटी-मोटी परेषानी महसूस होती है, तो उसे दवा देकर दूर किया जा सकता हैंे। जो लोग नषे के बहुत अधिक आदि होते है,उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाता है। वहां उन पर निरन्तर निगरानी रखी जाती है, और दवा दी जाती है। इस प्रकार हर तरह के नषे के विड्रोल सिस्टम्स से मुक्ति पाने के लिए आज बाजार में भी दवा उपलब्ध है।
मनीष षुक्ला

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