प्रिय श्री विजयदान-बिज्जी !
सच तुम तो छुपे हुए ठीक हो। न जाने क्यूँ आज लगा कि तुम्हारी कहानियाँ शहरी जानवरों तक पहुँच गईं तो वे कुत्तों की तरह टूट पड़ेंगे। गिद्ध हैं-नोच खाएँगे। तुम्हारी नम्रता है कि तुमने अपने रत्नों को गाँव की झीनी धूल में ढक कर रखा है। धूल भी नजर आती है। रत्न भी। कल रात से आज दिन तक तीनों कहानियाँ बिना रुके पढ़ चुका हूं-‘असमांन जोगी’, ‘नागण थारौ बंस बधै’ और ‘मिनख-जमारौ’। कहानियों का विश्लेषण करना तो आँधी के बाद चीजों को फिर-से समेटना-सा लगता है।
रै बेटा री गळाई सुखी व्हैला। गाजां-बाजां मनचायौ ब्याव व्हैला। अर अभरोसौ करणिया मर्यां उपरांत ठौड़-ठौड़ आक-धतूरौ बणनै ऊगैला।’
विजयदान देथा जिन्हें बिज्जी के नाम से भी जाना है राजस्थान के विख्यात लेखक और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति’’’’’ उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और साहित्य चुड़ामणी पुरस्कार जैसे विभिन्न अन्य पुरस्कारों से भी समानित किया
सच तुम तो छुपे हुए ठीक हो। न जाने क्यूँ आज लगा कि तुम्हारी कहानियाँ शहरी जानवरों तक पहुँच गईं तो वे कुत्तों की तरह टूट पड़ेंगे। गिद्ध हैं-नोच खाएँगे। तुम्हारी नम्रता है कि तुमने अपने रत्नों को गाँव की झीनी धूल में ढक कर रखा है। धूल भी नजर आती है। रत्न भी। कल रात से आज दिन तक तीनों कहानियाँ बिना रुके पढ़ चुका हूं-‘असमांन जोगी’, ‘नागण थारौ बंस बधै’ और ‘मिनख-जमारौ’। कहानियों का विश्लेषण करना तो आँधी के बाद चीजों को फिर-से समेटना-सा लगता है।
रै बेटा री गळाई सुखी व्हैला। गाजां-बाजां मनचायौ ब्याव व्हैला। अर अभरोसौ करणिया मर्यां उपरांत ठौड़-ठौड़ आक-धतूरौ बणनै ऊगैला।’
विजयदान देथा जिन्हें बिज्जी के नाम से भी जाना है राजस्थान के विख्यात लेखक और पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति’’’’’ उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और साहित्य चुड़ामणी पुरस्कार जैसे विभिन्न अन्य पुरस्कारों से भी समानित किया
अपनी मातृ भाषा राजस्थानी के के समादर के लिए 'बिज्जी' ने कभी अन्य किसी भाषा में नहीं लिखा, उनका अधिकतर कार्य उनके एक पुत्र कैलाश कबीर द्वारा हिन्दी में अनुवादित किया।
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उषा, १९४६, कविताएँ
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बापु के तीन हत्यारे, १९४८, आलोचना
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ज्वाला साप्ताहिक में स्तम्भ, १९४९–१९५२
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साहित्य और समाज, १९६०, निबन्ध
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अनोखा पेड़, सचित्र बच्चों की कहानियाँ, १९६८
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फूलवारी, कैलाश कबीर द्वारा हिन्दी अनुवादित, १९९२
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चौधरायन की चतुराई, लघु कथाएँ, १९९६
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अन्तराल, १९९७, लघु कथाएँ
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सपन प्रिया, १९९७, लघु कथाएँ
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मेरो दर्द ना जाणे कोय, १९९७, निबन्ध
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अतिरिक्ता, १९९७, आलोचना
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महामिलन, उपन्यास, १९९८
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प्रिया मृणाल, लघु कथाएँ, १९९८
राजस्थानी
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बाताँ री फुलवारी, भाग १-१४, १९६०-१९७५, लोक लोरियाँ
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प्रेरणा कोमल कोठारी द्वारा सह-सम्पादित, १९५३
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सोरठा, १९५६–१९५८
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टिडो राव, राजस्थानी की प्रथम जेब में रखने लायक पुस्तक, १९६५
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उलझन,१९८४, उपन्यास
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अलेखुन हिटलर, १९८४, लघु कथाएँ
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रूँख, १९८७
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कबू रानी, १९८९, बच्चों की कहानिय
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साहित्य अकादमी के लिए गणेशी लाल व्यास का कार्य पूर्ण किया।
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राजस्थानी-हिन्दी कहावत कोष।
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