Friday, 7 December 2012

लीडर चाहिए , राजा नहीं 
हर कहानी की शुरुआत एक था राजा  से ही होती है , कभी कोई कहानी यू  नहीं शुरू होती की एक लोकतंत्र था . आज हम जीते तो एक ऐसे समाज में है जहाँ  लोकतंत्र है लेकिन जब ताकत देने की बात आती है तो हम नेताओं को इतनी ताकत सौंप देतें है की वो अपनी अनैतिक होने में अपनी हदे पार कर दे और हमारे पास कुछ न करने के अलावा कुछ नहीं होता . यू तो हमारे यहाँ निर्वाचितों का साम्राज्य है पर एक बार निर्वाचन के बाद  नेता राजा बन बैठते है और शासन तो भगवान् भरोसे ही होता है . तो अब इस सब में हम क्या कर सकते है ये भी एक सवाल है , क्योकि जब भगवान भरोसे है तो हम इंसान कर ही क्या सकते है . तो इस सब का जवाब ये है की आग अपने घर में लगी है तो पानी डालने के लिए पडोसी का इंतज़ार करना तो पागलपन के अलावा और कुछ नहीं है . तो घर अपना जल रहा है तो आगे भी हमे ही आना है . मजबूत लोकपाल बिल लाया जाये, इस बात  पर जोर दिया जाये, नेताओं से सवाल पूछे जाये , आर टी आई का उपयोग किया जाये  और कितना काम हो रहा है कितना पैसा वाकई जनता पर ही  खर्च किया जा रहा है ...... इस सब से हम भी सरोकार रखें , और फिर अगर आवाज़ उठाये तो वो इतनी बुलंद हो की कोई उसे दबा न पाए बल्कि सुनने वाले के  माथे पर छप जाये . और ये सब करने की ताकत कोई रखता है तो वो है देश का युवा . तो देश का युवा देश की राजनीती से भी सरोकार रखे . इच्छाशक्ति को भ्रमित होने से रोके और सही दिशा दे . क्योकि देश को बदतर हालत से निकलने में समर्थ सिर्फ देश का एकजुट युवा ही है .

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