Wednesday 12 December 2012

                                    मेरा सफ़र   ( पहली कड़ी )

प्रदक्षिणा पारीक 

यह वैदिक काल है। मैं इस काल की एक नारी हूँ। ये काल मुझे मेरा स्वर्ण काल सा लगता है। मेरी प्रतिष्ठा और सम्मान समाज में सर्वोपरि है। मेरे पास अधिकार है। मैं स्वतंत्र हूँ ..... हर परिपेक्ष्य में। किसी भी महत्वपूर्ण काम में मेरी रजामंदी जरुरी है। मैं  विवाह के लिए अपना वर खुद चुनती हूँ। स्वयंवर और गन्धर्व विवाह मुझे इसका मौका देते है। और सही भी है जब जीवन मेरा है तो इसके फैसले कोई और क्यों ले। मैं किसी की संपत्ति नहीं। मेरा अपना अलग अस्तित्व है जिसे कतई  नकारा नहीं जा सकता। मैं उच्च शिक्षित हूँ और इसलिए ही संतानें भी उच्च गुणों वाली धीर, वीर ,त्यागी , दानी और विद्वान् है। और शिक्षित ,स्वतंत्र , गुणवान नारियो के प्रभाव से पूरा समाज और व्यवस्था सुव्यवस्थित और बेहतर है। सीता ,सावित्री, दमियंती ...ये सभी मेरे ही काल की विदुषी और संस्कारवान स्त्रियाँ है।

1 comment: