Thursday, 27 December 2012

                            पत्थर की  नारी ही है पूजनीय 

प्रदक्षिणा  पारीक   

 समाज का ये कैसा रूप  है। पुरुषों के अत्याचारों का  घड़ा यक्ष के आखिरी घड़े जैसा  प्रतीत होता है  जो भरने का नाम ही नहीं  लेता। और अत्याचार भी किस पर ... एक औरत पर।   जिसकी प्रस्तर की   मूरत को  कितने ही  रूपों में पूजने का ढकोसला ही  करता आया है।  कभी मन  से नहीं स्वीकार कर  पाया की .. हाँ , ये नारी वास्तव में पूजनीय है। और मूरत में एक नारी को  पूजने का नाटक शायद  इतना   लम्बा इसलिए चल  सका क्योंकि  उनकी आबरू पर  हाथ डालना इन पुरुषों की हवस को शांत नहीं कर  सकता , उसके लिए तो इन्हें कोई जीती जागती स्त्री चाहिए जिसका जीवन ये बर्बाद कर सकें।दूसरों की माँ बहन बेटियों की आबरू ले कर  खुद की बहन बेटियों को कैसा समाज देना चाह रहा है ये पुरुष। 
क्यों इन पुरुषों को  अपनी  आज़ादी का मतलब किसी औरत की आज़ादी पर  अंकुश लगाना लगता है। एक सवाल  जो सदियों से मुहं बाये खड़ा है की .. एक स्त्री ही क्यों गलत हो  जाती है , कीमत उसे ही क्यों चुकानी पड़ती है।
क्यों उस रात एक लड़की का ही बाहर निकलना गलत हो  गया उन दुष्कर्मियों का तो नहीं।

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