Tuesday 21 January 2014

भारतीय भाषाओं को बहुत कम तवज्जो मिली जेएलफ में


जयपुर, 21 जनवरी । चार दिन के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (जेएलएफ) का आज शाम समापन हो जाएगा और पीछे रह जाएंगी वे यादें जो इस फेस्टिवल के साथ गहराई तक जुड़ी हैं। हालांकि जेएलएफ ने साहित्य के प्रति लोगों की जिज्ञासा और उत्सुकता को और बढ़ाया और इसके बहाने जयपुर के लोगों को नामचीन साहित्यकारों से रूबरू होने का दुर्लभ अवसर भी मिला। पर इस समारोह में हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं को लेकर उपेक्षा का जो बर्ताव देखने को मिला, उसने साहित्य प्रेमियों के दिलों को दुखाया जरूर।
गुलाबी नगर में पिछले 5 दिन से अपनी चमक बिखेरे साहित्य के महाकुंभ ने हिंदी के  साहित्यप्रेमियों को निराश ही किया। देशभर से आये हिन्दी श्रोताओं की उत्सुकता तब खत्म हो गई जब उन्हें जेएलएफ में होने वाले कुल 174 सत्रों में से हिन्दी के नाम पर महज 10 सेशन ही अटैंड करने को मिले। अंग्रेजी के बढते बाजार ने हिन्दी प्रदेश में भी हिन्दी साहित्य को जगह बनाने नहीं दी। आयोजन में पसरे कन्फ्यूजन को देखे तो साहित्यकारों के चयन से लेकर भाषा की प्राथमिकता तक में धुंधलापन ही नजर आता है।
साहित्य उत्सव में  राजस्थानी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार विजयदान देथा पर आयोजित नमन सेशन को साहित्यप्रेमियों ने खूब सराहा, लेकिन सेशन के पूरे होने पर जब अनेक साहित्यप्रेमियों ने बिज्जी के साहित्य को पढने की इच्छा व्यक्त की तो साहित्य मेले में उन्हें निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि हिन्दी के नाम पर इस महाकुंभ में बिज्जी या दूसरे कथाकारों की किताबें उपलब्ध ही नहीं थीं।
जेएलएफ में सिर्फ एक प्रकाशक की स्टॉल ही थी, इसमें भी नब्बे फीसदी किताबें अंग्रेजी भाषा की थीं। हिंदी किताबों के लिए सिर्फ एक शेल्फ रखी गई थी। उसमें भी बहुत कम किताबें उपलब्ध थीं।
जेएलएफ में इस बार गुलजार जैसे लेखकों-कवियों की गैर मौजूदगी भी अखरी। हिंदी के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखकों के नाम भी फेस्टिवल की सूची में नहीं थे।
भारतीय भाषाओं के नाम पर सिर्फ हिंदी की थोड़ी-बहुत चर्चा थी, बाकी भाषाओं के न तो साहित्यकार थे और न उनके साहित्य की कोई बात की गई।
 मनीष शुक्ला

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