Friday 28 February 2014

सरकार युवाओं में अनुसंधान और शोध को बढ़ावा देने के लिए ठोस वैज्ञानिक नीति बनाए

कभी दुनिया भर में अपने ज्ञान विज्ञान का लौहा मनवाने वाला भारत निरंतर विज्ञान और नए शोधों के क्षेत्र मंे पिछड़ता जा रहा है। ग्लोबल इनोवेषन इंडेक्स 2013 में भारत 64वें से खिसककर 66वें स्थान पर खिसक गया है। वहीं वल्र्ड बैंक नाॅलेज फोर डवलपमेंट रिपोर्ट-2012 के मुताबिक इसमें शामिल 145 देषों में भारत 120वें पायदान पर ही खुद को साबित कर पाया। अफसोस तब होता है कि इन सबके बावजूद देष में विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए ना तो कोई ठोस नीति बनाई जाती है, ना ही बजट का पर्याप्त प्रावधान किया जाता है। डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति रहते जरूर कुछ सुधार हुआ था, लेकिन उनके बाद फिर वही ढाक के तीन पात। वर्तमान में अंतरिम बजट के तहत वित मंत्री महोदय ने विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में शोध और अनुसंधान के लिए महज 200 करोड़ रुपए का ही प्रावधान रखा। जो कि ऊंट के मुंह में जीरा ही है। जरा सोचिए! जब यूरोपियन देष और अमेरिका लाखों करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट तैयार करते हैं, वहीं हम सिर्फ 200 करोड़ ही दे रहे हैं। अलबत्ता ये जरूर है कि कुछ साल बाद हम वहीं तकनीक या उपकरण उन देषों से खरीदने के लिए लाखों करोड़ खर्च कर देते हैं, क्योंकि इनमें कुछ हिस्सा बतौर कमीषन सरकार में बैठे लोगों को मिलता है। लेकिन यदि वहां की बजाय इतना पैसा पहले ही शोध और अनुसंधान के लिए आवंटित किया जाए तो शायद हमें तकनीक और उपकरण आयात करने की जरूरत ही ना पड़े , बल्कि उन्हे निर्यात कर मुनाफा भी कमा सकते हैं।

आज राजनीतिक पेचिदगियों में फंसने के कारण ही 1928 में डाॅ. सी वी रमन को नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद किसी भारतीय वैज्ञानिक को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला। क्योंकि इस लायक शोध करने में जितनी सुविधाएं, उपकरण और पैसा चाहिए वो भारत में उपलब्ध ही नहीं है। इसीलिए हम भारतीय मूल के विदेषी नागरिकों द्वारा अर्जित नोबेल पुरस्कार और अन्य उपलब्धियों पर ही खुषी जाहिर करते नजर आते हैं।

ऐसे में  भारत सरकार से अपील है कि सरकार युवाओं में अनुसंधान और शोध को बढ़ावा देने के लिए ठोस वैज्ञानिक नीति बनाए, शोध के लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान करे, साथ ही विज्ञान को राजनीति से ना जोड़े।
इस बारें में कई वैज्ञानिकों से चर्चा हुई तो उन्होंने कहा कि हमंे नहीं लगता कि सरकार जल्द कोई कदम विज्ञान की दिषा में उठाएगी, क्योंकि वैज्ञानिक कोई वोट बैंक नहीं है और वैज्ञानिक राजनीति में दिलचस्पी भी नहीं रखते हैं।

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